मित्रों,
ओशो कहते हैं –
“जीवन का आनंद तभी संभव है जब शरीर, मन और आत्मा तीनों एक लय में हों। ध्यान इस लय को पुनः प्राप्त करने का मार्ग है।”
तो आइए समझें कि यह तीनों स्तर क्या हैं, इनमें असंतुलन क्यों आता है और ध्यान से कैसे हम इन्हें संतुलित कर सकते हैं।
1. शरीर – हमारे अस्तित्व का पहला आधार
शरीर के लिए ध्यान
ओशो ने शरीर को शुद्ध और हल्का करने के लिए सक्रिय ध्यान (Active Meditation) पर जोर दिया।
- डायनेमिक ध्यान: सुबह के समय किया जाने वाला यह ध्यान शरीर की जमी हुई ऊर्जा को मुक्त करता है। इसमें श्वास की गहराई, भावनाओं का विस्फोट और मौन – तीनों चरण शामिल हैं।
- कुंडलिनी ध्यान: शाम का ध्यान, जिसमें शरीर को हिलाना-डुलाना (shaking) और नृत्य (dancing) शामिल है। यह पूरे दिन का तनाव बाहर निकाल देता है।
इन ध्यान विधियों से शरीर हल्का, लचीला और ऊर्जा से भर जाता है।
2. मन – विचारों का अथाह सागर
मन के लिए ध्यान
ओशो कहते हैं, “मन को दबाने की कोशिश मत करो। बस देखो।”
- नादब्रह्म ध्यान: इसमें हम मंत्र humming करते हैं। जब आप ‘हूंऽऽऽं’ जैसी ध्वनि गुनगुनाते हैं, तो धीरे-धीरे विचारों की गति धीमी होने लगती है।
- विपश्यना: यह ध्यान बुद्ध की परंपरा से आया है। बस सांस को देखते रहना – आती है, जाती है। धीरे-धीरे मन शांत होने लगता है।
जब मन शांति में होता है तो भीतर एक निर्मल आकाश जैसा अनुभव होता है।
3. आत्मा – अस्तित्व का सबसे गहरा केंद्र
आत्मा के लिए ध्यान
- विचारों को देखना
- भावनाओं को देखना
- शरीर की हलचल को देखना
4. तीनों का संतुलन – जीवन की समरसता
ध्यान इन तीनों को जोड़ता है –
- शरीर को मुक्त और हल्का करता है,
- मन को शांत और स्थिर करता है,
- और आत्मा को जागृत करता है।
5. एक छोटा अभ्यास – दैनिक जीवन में संतुलन
आप चाहे कितने भी व्यस्त हों, दिन के तीन छोटे-छोटे अभ्यास आपकी जीवनधारा बदल सकते हैं:
- सुबह 10 मिनट शरीर को हिलाना-डुलाना – जैसे झूमना, कूदना, नृत्य करना।
- दोपहर या शाम को 10 मिनट सांस पर ध्यान – बस देखना, बिना हस्तक्षेप के।
- रात को सोने से पहले 5 मिनट साक्षीभाव – दिनभर में जो हुआ उसे देखें, और छोड़ दें।
यह छोटा-सा क्रम धीरे-धीरे शरीर, मन और आत्मा को एक लय में ला देगा।
निष्कर्ष
“ध्यान कोई साधना नहीं, यह तो बस सजग होने की कला है। जब सजगता आती है, तो जीवन अपने आप संतुलित हो जाता है।”